जलता अमेरिका "बंकर" में ट्रंप गृह युद्ध जैसे हालात
मानसिक प्रताड़ना से चीख़ते लोग,
ये एक बेहद सेंसटिव सेन्टेंस है...
ये बहुत संवेदनशील वाक्य है!
इसे सिर्फ़ जॉर्ज फ़्लॉइड की मौत से जोड़कर नहीं देखा जा सकता! जॉर्ज फ़्लॉइड अमेरिकन अश्वेत नागरिक थे जिनको मामूली चाय कैफे की उधारी पर की गई रिपोर्ट पर एक श्वेत पुलिस वाले ने गर्दन पर पूरे 9 मिनिट तक घुटने से दबा कर रखा!
जॉर्ज बार-बार कहते रहे "I can't breath"
पर नस्सली घृणा से भरे हुए श्वेत पुलिस कर्मी ने उनको नहीं छोड़ा और जॉर्ज की मृत्यु हो गयी!
25 मई 2020 के बाद से सारा कैनेडियन और अमेरिकी समाज सरकार के विरोध में सड़कों पर है! गृह युद्ध जैसे हालात हो गए हैं!
उनका विरोध का नारा है "I can't breath"
पर ये नारा सिर्फ फ़्लॉइड की मृत्यु औऱ उन पर हुए अत्याचार का करुण नारा नहीं बल्कि दुनिया के हर हिस्से में, कहीं पर भी की जाने वाली, किसी भी तरह की मानसिक या शारीरिक हिंसा की करुणा भरी चीत्कार है! स्वयं को जाति धर्म या रहन-सहन के आधार पर श्रेष्ठ समझना इस दुनिया की सबसे अधिक घिनौनी बीमारी है!
अब भी समय है कि हम दुनिया के किसी हिस्से में, किसी भी कारण से उपजी घृणा और हिंसा के बीच हर फ़्लॉइड तक इंसानियत और अपनेपन की मदद पहुंचा सकें! हम चाहें तो इस सदी की सबसे करुण पुकार
"I can't breath"
दर्द भरी आखिरी पुकार बन सकती है!
जाने कितने फ़्लॉइड किसी घृणा से भरे घुटने के नीचे दबे सांस मिल जाने का इंतज़ार कर रहे होंगे! जाने कितने फ़्लॉइड मानसिक अवसाद से अकेले संघर्ष कर रहे हैं! हमें हर फ़्लॉइड को सम्मान से साँस लेने का बराबरी का अवसर देना होगा!
वरना ये ख़ूबसूरत दुनिया हमारी ही फैलाई घृणा से घुटकर दम तोड़ देगी...🖋️
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